अन्तः कालीन लाभ का अर्थ :
अन्तःकालींन लाभ को सी०पी०सी०1908 की धारा 2(12) में परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार सम्पति के अन्तः कालीन लाभ से ऐसे लाभ पर ब्याज सहित वे लाभ अभिप्रेत है जो सम्पति पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति को वास्तव में प्राप्त हुए हो या जो वह मामूली तत्परता से प्राप्त कर सकता था किन्तु सदोष कब्जाधारी द्वारा की गयी अभिवृद्धियों के कारण हुए लाभ इसके अंतर्गत नहीं आयेगे।
अन्तःकालीन लाभ के आवश्यक तत्व :
1- सदोष कब्ज़ा
2- कब्जे के दौरान वास्तव में प्राप्त लाभ या
3- मामूली तत्परता से जो लाभ प्राप्त किया जा सकता था
4- ब्याज
5- सुधार या अभिवृद्धि के फलस्वरूप प्राप्त लाभ इसमें शामिल नहीं होता है
2- कब्जे के दौरान वास्तव में प्राप्त लाभ या
3- मामूली तत्परता से जो लाभ प्राप्त किया जा सकता था
4- ब्याज
5- सुधार या अभिवृद्धि के फलस्वरूप प्राप्त लाभ इसमें शामिल नहीं होता है
इसको एक उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है
‘अ’ की एक एकड़ जमींन पर ‘ब’ सदोष कब्ज़ा कर लेता है तथा कब्जे के अवधि में वह 5000 ₹ उस जमींन से लाभ के रूप में प्राप्त करता है।
यहाँ पर तीन परिस्थितियाआं हो सकती है –
क- सदोष कब्जाधारी द्वारा उस ज़मींन का बिना किसी सुधार के उपभोग किया जाना और लाभ प्राप्त करना
ख- सदोष कब्जाधारी द्वारा उस ज़मींन का कोई भी उपभोग न करना और कोई लाभ न प्राप्त करना
ग- सदोष कब्जाधारी द्वारा उस ज़मींन में सुधार करना और अधिक लाभ प्राप्त करना
‘अ’ की एक एकड़ जमींन पर ‘ब’ सदोष कब्ज़ा कर लेता है तथा कब्जे के अवधि में वह 5000 ₹ उस जमींन से लाभ के रूप में प्राप्त करता है।
यहाँ पर तीन परिस्थितियाआं हो सकती है –
क- सदोष कब्जाधारी द्वारा उस ज़मींन का बिना किसी सुधार के उपभोग किया जाना और लाभ प्राप्त करना
ख- सदोष कब्जाधारी द्वारा उस ज़मींन का कोई भी उपभोग न करना और कोई लाभ न प्राप्त करना
ग- सदोष कब्जाधारी द्वारा उस ज़मींन में सुधार करना और अधिक लाभ प्राप्त करना
इस उदाहरण में प्रथम अवस्था में 5000 ₹ तथा उस पर प्राप्त ब्याज अन्तः कालीन लाभ के रूप में होगा। दूसरी अवस्था में यदि ज़मींन का उपभोग नहीं किया जाता है तो अन्तः कालीन लाभ के रूप में वह राशी होगी जो मामूली तत्परता से उस ज़मींन से प्राप्त किया जा सकता था तथा उस पर ब्याज तीसरी अवस्था में जब उसमे सुधार से अधिक लाभ प्राप्त किया जाता है तो सुधार के द्वारा जो अधिक लाभ प्राप्त किया जाता है वह अन्तः कालीन लाभ में नहीं आता है।
अन्तःकालीन लाभ के कुछ उदाहरण
1- पट्टा की अवधि समाप्त होने के बाद भी कब्ज़ा बनाये रखना सदोष कब्ज़ा माना जाता है ऐसे दोषपूर्ण कब्जे के वह अन्तः कालीन लाभ के लिए उत्तरदायी होगा।
2-कब्जे की डिक्री पारित होने के पश्चात भी कब्ज़ा बनाए रखना
3- बंधक पुरोबंध की डिक्री पारित होने के बाद भी बन्धककर्ता द्वारा सम्पति का कब्ज़ा बनाये रखना
2-कब्जे की डिक्री पारित होने के पश्चात भी कब्ज़ा बनाए रखना
3- बंधक पुरोबंध की डिक्री पारित होने के बाद भी बन्धककर्ता द्वारा सम्पति का कब्ज़ा बनाये रखना
अन्तः कालीन लाभ का उदेश्य
अन्तः कालीन लाभ का उदेश्य उस व्यक्ति को प्रतिकर देना होता है जो सम्पति से बेदखल किया गया है और सम्पति के उपभोग से वंचित रखा गया है।
अन्तः कालीन लाभ के पीछे सिद्धांत
अन्तः कालीन लाभ निम्न सिद्धांतो पर प्रदान किया जाता है।
अ- सदोष कब्जाधारी अपने सदोष कार्य से लाभ न ले
ब- वास्तविक स्वामी को पूर्व की स्थति में रखना
स- वास्तविक स्वामी अगर कब्जे में होता तो सम्पति का किस प्रकार से उपयोग करता
ब- वास्तविक स्वामी को पूर्व की स्थति में रखना
स- वास्तविक स्वामी अगर कब्जे में होता तो सम्पति का किस प्रकार से उपयोग करता
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