Wednesday, December 25, 2024
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Causes of Growth of Administrative Law

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प्रशासनिक विधि के विकास के लिए मूल कारक राज्य की अवधारणा में परिवर्तन ही रहा है पहले राज्य की अवधारणा अहस्तक्षेप की नीति में थी जिसमें राज्य के कार्य एवं आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने एवं राज्य को बाय आक्रमण से बचाने रखने तक है सीमित थे। परंतु आगे चलकर राज्य की अवधारणा कल्याणकारी राज्य के हुई जिसमें राज्य व्यक्तियों के कल्याण के बारे में भी सोचने लगा जिस उद्देश्य के लिए राज्य को विभिन्न प्रशासनिक अधिकारों में अधिकारियों की नियुक्ति करने पड़े जिसका स्वभाव प्रणाम हुआ प्रशासन एवं व्यक्तियों के हितों के बीच टकराव जिस टकराव को दूर करने के लिए जो विधि विकसित हुई वही प्रशासनिक विधि ।

उपरोक्त सामान्य कारक के अतिरिक्त कुछ विशिष्ट कारक जो प्रशासनिक विधि के विकास के लिए उत्तरदाई रहे हैं ।

समस्या हल करने वाले कानूनों की अपेक्षा

मनुष्यों की विधि से अपेक्षा थी कि विधि उनके अधिकारों को परिभाषित करने की बजाय उनकी समस्याओं का निदान करें । 19वीं शताब्दी के प्रारंभ तक मनुष्य इतने से ही संतुष्ट हो जाया करता था कि कानून में उनके अधिकारों को परिभाषित कर दिया गया है। परंतु धीरे-धीरे मनुष्यों की विधि से अपेक्षा में बदलाव आया मनुष्य विधि से अपेक्षा करने लगे कि विधि उनके अधिकारों को परिभाषित करने के बजाए उनके प्रतिदिन की व्यवहारिक समस्याओं का निराकरण करें लोगों की इस बदली हुई अपेक्षा को पूरा करने के लिए राज्य को तमाम सारे प्रशासनिक पदाधिकारियों को नियुक्त करना पड़ा साथ ही साथ तमाम सारे प्रशासनिक अधिकरणों की भी स्थापना भी करनी पड़ी जिसका तात्पर्य हुआ प्रशासनिक विधि का विकास ।

राज्य के कार्यों के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन

17 वीं 18 वीं यहां तक कि 19वीं शताब्दी तक मनुष्य मात्र इतने से ही संतुष्ट हो जाया करता था कि उसके शरीर एवं संपत्ति के विरुद्ध हुए हानि के लिए राज्य द्वारा क्षतिपूर्ति प्रदान कर दिया गया है परंतु आज के युग का व्यक्ति मात्र इतने से संतुष्ट नहीं है लोग यह नहीं चाहते कि किसी क्षति के दशा में क्षतिपूर्ति दी जाए बल्कि उनकी अपेक्षा है कि राज्य उत्पन्न करने वाले कारकों को ही समाप्त कर दें इन कारकों को समाप्त करने के लिए राज्य को तमाम सारे प्रशासनिक प्राधिकारी यों की नियुक्ति करनी होगी जिसका स्वाभाविक परिणाम है प्रशासनिक विधि का विकास ।

विभिन्न विषयो पर कानून निर्माण की आवश्यकता

आज के कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के अंतर्गत राज्य क को तमाम सारे कल्याणकारी कानून बनाने होते हैं हमारी विधायक विभिन कारणों से विधायन के उस गुणवत्ता को नही प्रदान कर पाती जिसके प्रदान किए जाने की इससे अपेक्षा की जाती है इसलिए विधायिका स्वयं कानून बनाने की शक्ति को कार्यपालिका को प्रत्यायोजित कर देती है जिसका तात्पर्य प्रशासनिक विधि का विकास है ।

  1. विधायिका के पास समय की कमी एवं कार्य की अधिकता होती है जिसके कारण विधायिका कानून के सिर्फ बाहरी ढांचे को ही पारित करती है एवं उसके अंतर्गत विस्तृत नियम के बनाए जाने की शक्ति को प्रशासन को सौंप कर देती है जिसका तात्पर्य होगा प्रशासनिक विधि का विकास ।
  2. आज के कल्याणकारी युग में विधायिका को तमाम सारे कानून पारित करने होते हैं जो अत्यंत ही तकनीकी प्रकृति के होते हैं जिसको समझ सकने में विधायिका के सदस्य तकनीकी ज्ञान नहीं रखते इस कारण विधायिका कानून बनाने की शक्ति को ऐसे प्रशासनिक इकाइयों को सौंप देती है जिनके सदस्य तकनीकी ज्ञान रखते हैं प्रत्यायोजित विधान की प्रणाली भी इस प्रकार प्रशासनिक विधि के विकास में सहायक रही है ।
  3. आज के जटिल समाज के अंतर्गत तमाम सारे ऐसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं जिनके लिए तत्काल कानून बनाया जा सकना संभव नहीं होता है इसलिए विधायिका कानून बनाने की शक्ति कार्यपालिका को सौंप देती है कि जब जैसी आवश्यकता हो कार्यपालिका प्रत्यायोजित विधान की प्रणाली अपनाकर नियम इत्यादि बना सके इसका तात्पर्य होगा प्रशासनिक विधि का विकास ।
  4. तमाम सारे ऐसे विषय होते हैं जिनके संबंध में अग्रिम रूप से कानून बनाया ही नहीं जा सकता उदाहरण के लिए यदि काफी के निर्यात के संदर्भ में कानून बनाया जाना है तो विधायिका कठिनाई महसूस करेगी क्योंकि काफी का मूल्य मांग एवं आपूर्ति पर निर्भर करेगा इसलिए जो तकनीकी अपनाई गई वह था काफी बोर्ड का गठन जिसको नियम बनाने की शक्ति प्रत्यायोजित की गई ।
  5. अचानक उत्पन्न हो रहे मामलों के लिए भी विधायक का अग्रिम रूप से कानून नहीं बना सकती इसके लिए कार्यपालिका को विधायी शक्ति प्रत्यायोजित कर दी जाती है जिसका तात्पर्य होगा प्रशासनिक विधि का विकास ।

परंपरागत न्याय प्रशासन की कमियां

परंपरागत न्याय प्रशासन की कुछ कमियां थी या है जिन कमियों को दूर करने के लिए प्रशासी न्यायालय अथवा न्यायाधिकरण की स्थापना की जाने लगी जिसका तात्पर्य हुआ प्रशासकीय विधि का विकास । परंपरागत न्याय निर्णय कुछ कमियां है जिनके कारण प्रशासकीय न्यायालयो/ अभिकरणों का विकास हुआ है वे इस प्रकार से है –

  1. परंपरागत न्यायालय न्याय प्रशासन की सार्वभौमिकता में विश्वास रखते हैं जबकि 21वीं शताब्दी की मांग है कि न्याय प्रशासन व्यक्ति परक होना चाहिए । व्यक्तियों की आवश्यकताओं के अनुरूप न्याय प्रशासन का समायोजन किया जाना चाहिए । हमारे परंपरागत न्यायालय इस अवधारणा के लिए उपयुक्त नहीं है । इस कारण प्रशासनिक न्यायालयों को स्थापित किया जाने लगा है जिन्हें पर्याप्त विवेकी शक्ति दी गई है ताकि वे न्याय को व्यक्तियों की आवश्यकताओं के अनुरूप समावेशित कर सके ।
  2. हमारे परंपरागत न्यायालय निवारक न्याय प्रदान करने के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि उनकी सीमाएं यह होती है कि वे तब तक किसी मामले का संज्ञान नहीं ले सकते जब तक कि वाद का कारण ना उत्पन्न हो जाए तथा जब तक की पक्षकार उनके पास ना जाए । जबकि 21वी सदी की मांग यह है कि न्याय प्रशासन को निवारणत्मक प्रकृति का न्याय प्रदान करना चाहिए जिससे वाद का कारण उत्पन्न ही ना हो । ऐसे दृष्टिकोण के लिए प्रशासनिक न्यायालय अथवा अभिकरण ही उपयुक्त होते हैं ।
  3. आज का परंपरागत न्याय प्रशासन तकनीकी एवं खर्चीला एवं विलंब कारी है जिसे सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता इसी कारण प्रशासनिक न्यायालयों की स्थापना की गई जिनके सामने कार्यवाही सामान्य सादे कागज पर भी हो सकता है, समय एवं खर्चे में भी कमी होती है ।
  4. परंपरागत न्याय प्रशासन में प्रयोगात्मकता का अवसर शून्य के बराबर होता है क्योंकि परंपरागत न्यायालय साक्ष्य एवं प्रक्रिया के तकनीकी नियमों से बाध्य होते हैं । तथा इस दर्शन में विश्वास रखते हैं कि कानून में लचीलापन नहीं आना चाहिए । यह सब पर समान रूप से लागू होना चाहिए । जबकि 21वीं सदी की आवश्यकता यह है कि न्याय प्रशासन में प्रयोगात्मकता होनी चाहिए । इसके लिए न्यायाधीशों को पर्याप्त मात्रा में विवेकी शक्ति दी जानी चाहिए । इस कारण प्रशासनिक न्यायालय एवं अभिकरणों की स्थापना की जाती है । जिसका परिणाम होता है प्रशासनिक विधि का विकास । ऐसे प्रशासनिक अभिकरणो के सदस्यों को पर्याप्त मात्रा में विवेकी शक्ति दी जाती है ताकि इनका प्रयोग करके वे प्रयोगात्मक निर्णय दे सके ।

औद्योगिकीकरण (Industrialization)

आज का युग औद्योगीकरण का युग है उद्योग एवं उसमें लगे कामगारों को व्यवस्थित रखने के लिए तमाम सारे विनियमित करने वाले कदम उठाने पड़ते हैं, तमाम सारे प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति करनी पड़ती है, तमाम सारे श्रमिक न्यायालयों एवं औद्योगिक अभिकरणो को स्थापित करना पड़ता है जिसका स्वभाव परिणाम होता है प्रशासनिक विधि का विकास ।

SPShahi
SPShahihttps://www.spshahi.com
Author, SP Shahi is Advocate at the High Court of Judicature at Allahabad, He holds LL.M. degree and qualification in the NET exam. He prefers to write on legal articles and current affairs.

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