न्यास का क्या तात्पर्य है ? न्यास का सृजन कैसे होता है?

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न्यास की मूल अवधारणा रोमन विधि से ली गई तथा इंग्लैंड में इसे विकसित किया गया। न्यास एक ऐसा दायित्व है, जिससे वह व्यक्ति जिसे न्यास धारी कहा जाता है अन्य व्यक्तियों के हित के लिए उनकी संपत्ति पर नियंत्रण रखता है जिन्हें हितग्राही कहा जाता है

न्यास की परिभाषा

प्रोफेसर कीटन के अनुसार ” न्यास एक ऐसा संबंध है जो उस समय उत्पन्न होता है जबकि वह व्यक्ति, जिसे न्यासधारी कहते हैं, साम्य के अंतर्गत चल, व अचल संपत्ति को विधिक अथवा समयीक दायित्व के द्वारा कुछ व्यक्तियों के लाभ के लिए, जिसमें वह स्वयं हो सकता है और जिनको हितग्राही कहते हैं, अथवा विधि द्वारा अनुज्ञात किसी प्रयोजन के लिए इस प्रकार धारण करने के लिए बाध्य किया जाता है कि संपत्ति का लाभ न्यासधारी को न मिल कर हितग्राही अथवा न्यास के अन्य प्रयोजनों को पहुंचे।”
स्टोरी के अनुसार ” न्यास चल अथवा अचल संपत्ति में उसके विधिक स्वामित्व से भिन्न एक साम्यिक अधिकार है”
भारतीय न्यास अधिनियम की धारा 3 के अनुसार “न्यास संपत्ति के स्वामित्व से संलग्न एक ऐसा दायित्व है जिस का उद्भव स्वामी के किए गए और उसके द्वारा स्वीकृत, अथवा दूसरे या दूसरे और स्वामी के लाभ के लिए उसके द्वारा घोषित तथा स्वीकृत विश्वास से होता है।
वह व्यक्ति जो विश्वास करता है उसे घोषित करता है न्यास कर्ता कहलाता है, वह व्यक्ति जो विश्वास प्रतिग्रहीत करता है ‘न्यासधारी’ कहलाता है, वह व्यक्ति जिस के फायदे के लिए विश्वास प्रतिग्रहीत किया जाता है ‘हितग्राही’ कहलाता है।

न्यास का सृजन

न्यास के सृजन के बारे में न्यास अधिनियम की धारा 4 से 10 तक में बताया गया है लेकिन न्यास के सृजन के आवश्यक तत्व क्या है इसे धारा 6 मे बताया गया हैै। इसलिए सबसे पहले धारा का उल्लेख आवश्यक है।

न्यास के सृजन के आवश्यक तत्व

अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत किसी व्यक्ति द्वारा शब्दो या कृत्यों के माध्यम से निम्न शब्दों को पूरा करके न्यास का सृजन किया जा सकता है-

1. न्यासकर्ता का न्यास सृजित करने का आशय होना चाहिए।
न्यास सृजित करने का पहला तत्व न्यासकर्ता का न्यास  न्यास सृजित करने का आशय होना चाहिए। “आशय मस्तिष्क की वह कार्यवाही है जिसमें कृत्य का ज्ञान और परिणाम का पुर्वानुमान होता है।”
अधिनियम की धारा 7 जिसमें यह बताया गया है कि कौन व्यक्ति न्यासकर्ता हो सकता है धारा 7 के अनुसार ऐसा प्रत्येक व्यक्ति
जो संविदा करने में सक्षम है ।
अवयस्क है तो उसके द्वारा या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आरम्भिक अधिकार रखने वाले प्रधान दीवानी न्यायालय की अनुज्ञा से
न्यास का सृजन किया जा सकता है।

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